Thursday, January 10, 2013


दुःख उन  दो कटे हुए सरों को देखकर तो बहुत होता,  लेकिन इन झुके हुए सरों को देख कर आक्रोश उससे भी ज्यादा है। 

भगवन भी उनकी आत्मा को शांति नही दे सकते जो ऐसे हिजड़े आकाओं की कुर्सी से चलने वाले पिलपिले लोकतंत्र की सरहद पर कुर्बान हुए। 

हमारे  गांधीजी होते, तो कहते , एक का सर कट गया तो अगले का सर आगे कर दो।  
एक दो गाँधी आज भी हैं, वो क्या कहेंगे इससे फरक नही पड़ता क्यूंकि वो जो कहते हैं, वो कभी करते नही। 

1947 कश्मीर में बमबारी हो रही थी जब हम 550 मिलियन रुपये इस्लामाबाद भेज रहे थे।  मैं इतिहास में जीना नही चाहता लेकिन दुःख की बात है वो पचपन करोड़ आज भी दिए जा रहे हैं, रोज़  कई तरीकों से, अनेक माध्यमों से . 
आज भी हम बाएं हाथ से हाथ मिला रहे हैं उस पड़ोसी से, जो हमारे दाहिने हाथ पर वार कर रहा है और रोते बिलखते कहते भी जा रहे हैं की हम शांति वार्ता नही रोकेंगे कुछ भी हो जाये 

उनका विदेश मंत्रालय कहता है , जनाब हम करोडो भारतीयों के चिल्लाने पर जवाब नही देंगे , 
सही कहता है, जहाँ बेगैरती हो, वहां गाली काम  नही आती,  गोली चलानी पड़ती है . 

मैं नही कहता की युद्ध छेड़ दो, हमें युद्ध की कोई ज़रुरत नही है, बस सीमा में 40-50 मील घुस कर, चीथड़े उड़ा  कर वापस आ जाओ एल ओ सी, , पर नहीं,  बस कठोर शब्दों में निंदा करते रहेंगे
उनके साथ इतना आतंकवाद कर दो की कराची पोर्ट पर से समुद्र भे कूद जाएँ पर खाड़ी  में कैम्प बनाने की सोच भी न सके। 

उस दिन इन दोनों सरों का , दोनों वीरों का, हिसाब हमारे 'सर' से चुकता हो सकेगा . 

जय हिन्द 




Sunday, January 2, 2011

इंतज़ार का मजा कुछ और ही है .......

आदत सी पड़ गयी है मुझे इस बेरुखी की यूँ तो ...

पर तेरे ठुकराने के इंतज़ार का मजा कुछ और ही है .



मुझे भी इल्म है, तुझे भी इल्म है जालिम ,

पर तेरी इबारत में लिखी इस जुदाई के इंतज़ार का, मज़ा कुछ और ही है ..



न ये समझ लेना किसी गलत फ़हमी में जी रहा हूँ मैं,

आफ़ताब इश्क में बेवफाई के ,इंतज़ार का मज़ा कुछ और ही है



कहने को तो तुझमे ऐसा क्या है जो इस कद्र की तड़प है मेरी....

पर सच्चे आशिक की रुसवाई के .. इंतज़ार का मजा कुछ और ही है ...

Monday, July 26, 2010

तेरी यादें ......

तेरी यादें ...
लहू के एक एक कतरे की तरह ...
उखड़ती सी हर इक साँस के तरह ......
हर लम्हे , हर पल चीरती सी.....
तेरी यादें .....

साहिल से दूर एक मौज की तरह ...
हारी सी, थकी फ़ौज की तरह ...
बेकार सी, पर हर पल चीरती सी ..
तेरी यादें ......


दिल के अरमानों में टीस की तरह ...
पिछली गली में खोयी हुई अशर्फी सी.

तेरी यादें....

तेरी यादें......
आशाओं के जमघट सी,
भावनाओ के पनघट सी
तेरी यादें .......
जो असफल प्रेम की कहानी सी हैं ,
थोड़ी अल्हड, थोड़ी सयानी सी हैं
तेरी यादें.........
जिनसे होकर मेरे सारे अरमान झलकते हैं
जिनमे जाने से मेरे दिल के तार खनकते हैं,
तेरी यादें..........
एक कांटो भरे गुलाब सी,
सवाल सी, जवाब सी
तेरी यादें ..........

अलविदा

अलविदा कह दो ,
हुस्न के साहिल से छूटो ,
मौज की मौजों से रूठो,
हर कदम पर है अब दुश्वारियां,
उज्र की है ये अठखेलियाँ,...
हर खुशी को, बुजदिली को,
अलविदा कह दो,

गम को बना लेना है साथी उम्र भर ,
मुश्किलों से है तो यारी उम्र भर ,
कांटे ही कांटे जब दिए 'उसने ' ,
हर फूल को, गुलशन को, कलियों को,
अलविदा कह दो,

आफताब
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सब कुछ अच्छा है

अच्छा है ,
सब कुछ अच्छा है,
सिवाए मेरे...
और कुछ बेवकूफों के ,
जिन्हें 'सब कुछ बदलना है'.
सब कुछ अच्छा है ,

यह कोई कविता नही है , जिसमे लय ढूंढ रहे हो,
लय नही है, ताल भी नही है ,
यह तो बस मन का गुबार है , जो यहाँ निकल रहा है,

बाकी
सब कुछ अच्छा है
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शुरुआत....

कुछ नुक्कड़ ऐसे होते हैं, जिनके बगैर रास्ता पूरा नही हो सकता,
बकलम खुद ही कुछ रास्ते तय करने ,
कुछ बोलने, कुछ सुनने,
मंजिलों की चमकती दुनिया से अलग,
राह के हर कंकड से बचने का लुत्फ़ उठाने,चल पड़े हैं हम, मैं और मेरी तन्हाई....
इस बेकारी के चश्मे में , जहाँ बंदिशें मानों धुल सी गयी हैं,
ताज़े पानी की हर बूँद सा हर ताजा ख्वाब जहां लफ़्ज़ों के मार्फ़त बयाँ होता है,
उस ज़हाँ में, भले ही कल्पना में ही सही , स्वच्छ चमकते धारे की तरह बहते हुए ज़ज्बात....
इस्तकबाल है आप का ,

सुनता है जो ज़मीर का ,
न गरीब का , न अमीर का ,न खुदा का न भगवान का,मज़मा है ज़बान का.....

आपका

Suvigya Mishra